मंगलवार, 2 मई 2023

क्यो करते है राजनीतिज्ञ माॅं बगलामुखी की आराधना

क्यो करते है राजनीतिज्ञ माॅं बगलामुखी की आराधना-आचार्य पंडित रोहित वशिष्ठ 
क्यो करते है राजनीतिज्ञ माॅं बगलामुखी की आराधना-आचार्य पंडित रोहित वशिष्ठ

माँ बगलामुखी कृपा से ही  राजयोग स्थिर रहता है।  सत्ता-महत्ता दोनो ही इनके अधीन हैं। इसलिए नेता-अभिनेता सभी इनकी शरण में जाते हैं। 

बगलामुखी स्तम्भन की देवी कही जाती है इनकी आराधना करने वाले को शत्रु कभी हावी नही हो पाते। माॅं बगलामुखी की आराधना से बडे से बडा शत्रु भी धराशायी हो जाता है। यही कारण है कि मां बगलामुखी के दरबार में नेता-अभिनेता  सभी हाजिरी लगाते रहते  हैं। 

माँ बगलामुखी का स्वभाव ही है कल्याण करना

भारत चीन युद्ध के समय पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु नें दतिया में स्थित पीताम्बरा पीठ में 51 कुण्डीय यज्ञ कराया था। यज्ञ के 11वें दिन‌ यज्ञ की पूर्णाहुति हुई तो पूर्णाहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेना वापिस बुला ली थी। यह यज्ञशाला आज भी इस मंदिर में विद्यमान है और वहां पट्टिका पर इस बात का उल्लेख भी है।
  
इंदिरा गाधी भी करती थी माॅं बगलामुखी की उपासना 
सन 1977 में चुनावों में हार के बाद पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने हिमाचल प्रदेश के कांगडा जिले के देहरा में  स्थित बगलामुखी के प्राचीन मंदिर में  माॅं बगलामुखी का अनुष्ठान करवाया था। उसके बाद वह एक बार फिर दोबारा सत्ता में आई और 1980 में देश की प्रधानमंत्री बनी.

रविवार, 6 नवंबर 2022

चन्द्र ग्रहण 2022

चन्द्र ग्रहण पर विशेष जानकारी 

भारत में दिखाई देने वाला चंद्र ग्रहण 8 नवम्बर 2022 दिन मंगलवार को सायंकाल में आरंभ होगा।
 यह ग्रहण भारतीय स्टैंडर्ड टाइम के अनुसार दोपहर 2 बजकर 39 मिनट से सायं 6 बजकर 19 तक रहेगा। (यह ग्रहण का खगोलीय समय है।)
धार्मिक कृत्यों के लिये ग्रहण का प्रभाव तभी माना जाता है जब वह दिखाई देने लगता है। इसलिए इस चन्द्र ग्रहण में  चन्द्र उदय के बाद से लेकर ग्रहण समाप्त होने तक का समय ही धार्मिक विधि-निषेध के लिये मान्य होगा। 

कार्तिक पूर्णिमा को पडनें वाला इस ग्रहण पर चन्द्रोदय सहारनपुर के स्थानीय समय के अनुसार सायं 5 बजकर 24 मिनट पर होगा। 
इसलिए ग्रहण का आरंभ भी सायं 5 बजकर 24 मिनट से ही माना जायेगा। सायं 6 बजकर 19 मिनट पर ग्रहण समाप्त हो जायेगा। 
धार्मिक कार्यों के लिये ग्रहण की कुल अवधि 55 मिनट रहेगी।
ग्रहण का सूतक- 
ग्रहण का सूतक 8 नवंबर मंगलवार को प्रातः 8 बजकर 24 मिनट से प्रारंभ हो जाएगा।

ग्रहण काल में क्या करें-
ग्रहण प्रारंभ होने से पूर्व स्नान करना चाहिए और ग्रहण काल आरंभ होते ही मंत्र जप करना चाहिए ग्रहण समाप्त होने तक निरंतर मंत्र जप करते रहना चाहिए ।
ग्रहण आरंभ होने से पूर्व ही गर्भवती स्त्री पवित्र स्थान पर बैठकर अपनी गोद में सूखा नारियल रखें और ग्रहण के समाप्ति तक श्री विष्णवे नमः इस मंत्र का जप करें। ग्रहण के बाद यह नारियल घर का कोई भी सदस्य बहते जल में प्रवाहित कर दें ।
ग्रहण काल में देव मूर्ति का स्पर्श ,अनावश्यक खानपान, सोना, नाखून -बाल काटना ,हजामत बनाना ,तेल मालिश करना ,मल-मूत्र त्यागना, अनावश्यक घूमना वर्जित है। 
छोटे बालक, रोगी एवं वृद्ध व्यक्ति आवश्यकतानुसार जल औषधि आदि का सेवन कर सकते हैं।

विभिन्न राशियों पर ग्रहण का प्रभाव- 
यह चन्द्र ग्रहण ग्रहण भरणी नक्षत्र मेष राशि पर घटित हो रहा है। के प्रथम चरण में स्पर्श करके उत्तराषाढा नक्षत्र के द्वितीय चरण में समाप्त होगा।
 इसलिए मेष राशि में उत्पन्न जातकों को विशेष रूप से चंद्र व राहु ग्रह के मन्त्र का जप विषय लाभदायक रहेगा। 

 विभिन्न राशि वालों को ग्रहण का असर इस प्रकार रहेगा ।
मेष राशि - शरीर कष्ट, चोट भय व धन क्षय की संभावना है।
वृष राशि - धन हानि न मानसिक तनाव की संभावना है। 
मिथुन राशि -धन लाभ एवं सुख की प्राप्ति होगी।
कर्क राशि - रोग, कष्ट, चिन्ता व भय की सम्भावना है।
सिंह राशि- संतान सम्बन्धी चिंता हो सकती है। ।
कन्या राशि - शत्रु भय व दुर्घटना की सम्भावना रहेगी साथ ही खर्च में अधिकता रहेगी।
तुला राशि- जीवन साथी का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।
 वृश्चिक राशि-रोग व गुप्त चिन्ता परेशान कर सकती है साथ ही महत्वपूर्ण कार्यो में विलम्ब हो सकता है।
धनु राशि-अनावश्यक खर्च की अधिकता रहेगी साथ ही अनावश्यक भागदौड़ करनी पड़ सकती है।
 मकर राशि-कार्य सिद्धी एवं धन लाभ होगा।
 कुंभ राशि-प्रगति उत्साह एवं पुरुषार्थ की वृद्धि होगी।
 मीन राशि-धन हानि, खर्च की अधिकता और अनावश्यक यात्राएं हो सकती है। 
 
जिन जातकों को यह ग्रहण अशुभ फल देने वाला है उन्हें अपनी राशि के अनुसार वस्तुओं का दान एवं ग्रहण काल में अपनी राशि के स्वामी का मंत्र जप करना विशेष लाभकारी रहेगा
©®आचार्य पण्डित रोहित वशिष्ठ
सिद्धपीठ शिव बगलामुखी मंदिर, ब्रह्मपुरी कालोनी, पेपर मिल रोड, सहारनपुर 
(9690066000 9897191499)

 

रविवार, 25 सितंबर 2022

कलश स्थापना की सही विधि और शुभ मुहूर्त


कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
कैसे करें नवरात्र में मां भगवती की आराधना 
सोमवार 26 सितम्बर 2022 से  
आरंभ होने वाले "शारदीय नवरात्र" के विषय में विशेष लेख - आचार्य पंडित रोहित वशिष्ठ

सिद्धपीठ शिव बगलामुखी मंदिर
 ब्रह्मपुरी कालोनी पेपर मिल रोड
 सहारनपुर

पूरे वर्ष में चार बार नवरात्रि का आगमन होता है 
सोमवार  से आरंभ होने वाले  नवरात्र को  शारदीय नवरात्र  के नाम से जाना जाता है । 
" नवरात्र " जगदंबा की  नवरात्रि नौ रात्रियों से संबंधित है। नौ दिन तक  माॅं भगवती के अलग रूप की पूजा होती है। भगवती के नौ रूप इस प्रकार हैं   प्रथम  नवरात्रि की देवी शैलपुत्री है।
दूसरे नवरात्रि के देवी ब्रह्मचारिणी हैं।
तीसरे नवरात्रि के देवी चंद्रघंटा है।
चौथे नवरात्रि की देवी कुष्मांडा है।
पांचवे नवरात्रि के देवी स्कंदमाता है।
छठे नवरात्रि के देवी कात्यायनी है।
सातवें नवरात्रि की देवी कालरात्रि है।
आठवे नवरात्रि की देवी महागौरी है।
नवें नवरात्रि के देवी सिद्धिदात्री है । 
इन नौ दिनों में भगवती के नौ रूपों की पूजा कर भक्त अपने जीवन में सुख शांति एवं आनंद की प्राप्ति करते हैं। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि भगवती के नाम एवं रूप भले ही अलग अलग हैं लेकिन इनका संबंध वास्तव में भगवती माता पार्वती से है । माता पार्वती ही अलग अलग समय में अपने भक्तों के कल्याण के लिए  अलग-अलग रूप धारण कर  संसार में  प्रकट होकर लीला करती है।
श्री गणेश जी की माता पार्वती की पूजा करने से मनुष्य को समस्त मनोवांछित फल की प्राप्ति हो जाती है। व्यक्ति को किसी भी प्रकार की समस्या हो इन नवरात्रों में मां जगदंबा की आराधना करने से उनकी समस्त समस्याओं का निवारण हो जाता है।

किस प्रकार  माँ की पूजा करे। 
सर्वप्रथम पूजा के लिए स्थान का चयन करें, वह स्थान पवित्र होना चाहिए। पूरब दिशा को पूजा के लिए शुभ माना जाता है। भगवती की पूजा में उपयोग की जाने वाली सामग्री का संग्रह सावधानीपूर्वक करना चाहिए। शुभ स्थान व शुद्ध भाव एवं पवित्र वस्तुओं से विधिपूर्वक  की गई पूजा  अवश्य ही  मनोवांछित फल प्रदान करती है । भगवती की पूजा करने के लिए सर्वप्रथम तो किसी योग्य ब्राह्मण को निमंत्रण देना चाहिए । सात्विक ब्राह्मण के द्वारा की गई पूजा अवश्य ही यजमान का कल्याण करती है । ब्राह्मण के न मिलने पर स्वयं भी भगवती की पूजा कर सकते हैं।  देवी भागवत में कहा गया है भगवती का आवाहन एवं विसर्जन प्रातः काल ही करना चाहिए । भगवती के पूजा में कलश स्थापन , ज्योति स्थापन के लिए सुबह का समय उपयुक्त माना जाता है 
पूजा की सामग्री अपने सम्मुख रखकर सबसे पहल अपने पूजा घर में पूरब और उत्तर के कोने में रेत या मिट्टी में जौ बोयें  उसके ऊपर जल से भरा हुआ कलश रखें । कलश में एक सुपारी दो लोग दो इलायची दूर्वा एक जायफल एक पान का पत्ता एक आम की टहनी पिसी हुई थोड़ी हल्दी रोली एवं गंगाजल  डालें । आम के पत्ते कलश के ऊपर रखे ।आम के पत्तों की संख्या 5,7,9 या 11 होनी चाहियें। एक पात्र में चावल भरकर  कलश के ऊपर रखे। नारियल के ऊपर लाल चुनरी लपेटकर उसमें कुछ दक्षिणा रखे। नारियल कलश के ऊपर इस प्रकार रखे कि नुकीला भाग पूरब की ओर हो। भगवती की पूजा करने से पहले गणेश जी की पूजा ,नवग्रह की पूजा,कलश की पूजा एवंं ज्योति की पूजा करनी आवश्यक है। इसके बाद ही जगदम्बा की  पूजा की जाती है।  एक पुष्प श्री गणेश जी को अर्पण कर गणेश जी को नमस्कार करें एक पुष्प नवग्रह का ध्यान करते हुए  अर्पण करे। चोकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर मां भगवती की मूर्ति या फोटो स्थापित करें। मां को एक चुनरी अर्पण करे। यदि संभव हो 9 दिन के लिए अखंड ज्योत रखे । घर में  मां जगदंबा की ज्योति स्थापन करने के बाद  घर को खाली नहीं छोड़ा जाता, घर में किसी ना किसी व्यक्ति का होना आवश्यक है  यदि ऐसा संभव नहीं है तो अखंड ज्योत न जलाकर केवल पूजा के समय भी जोत जलाई जा सकती है अखंड ज्योत के लिए शुद्ध देसी घी, तिल का तेल, अथवा सरसों का तेल प्रयोग करना उचित रहता है ।मां के सम्मुख दीपक जलाकर लाल पुष्प लेकर के भगवती दुर्गा का ध्यान करें पुष्प माँ के चरणों में अर्पण करे। माँ को वस्त्र चढ़ाएं वस्त्र के रुप में लाल चुनरी चढ़ाना उपयुक्त है ।मां को रोली से सुंदर तिलक करें मां को अक्षत चढ़ाएं और एक लाल फूल मां को चढ़ाएं। मां को धूप दीप दिखाएं भगवती को मावे से बना भोग अर्पण करें। मां को दो लाल फल चढ़ाएं । पान अर्पण  करे, पान के साथ दो लौंग दो इलायची और एक सुपारी भी चढ़नी चाहिए।
 मां के चरणों में दक्षिणा अर्पण करें और लाल पुष्प लेकर के मां से प्रार्थना करें। प्रार्थना करते समय यह मंत्र बोले-   
 या देवी सर्वभूतेषु
         मातृरुपेण संस्थिता:। 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै 
         नमस्तस्यै नमो नमः ।।

यदि संभव हो तो मां के सम्मुख बैठकर के 108 बार माॅं के प्रिय मन्त्र " ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै " इस मंत्र का जप करे।
इस प्रकार प्रतिदिन माॅं की आराधना करने से 9 दिन में माॅं आप पर प्रसन्न होकर आपको धन-धान्य,सुख समृद्धि एवं सुख शांति प्रदान करेगी ।

 इन बातों का रखें ध्यान 

मां भगवती की आराधना करते समय  मन में सात्विक भाव रखना अत्यंत आवश्यक है। 
क्रोध को त्याग कर , काम आदि विकारों को अपने से दूर कर , संसार की समस्त  स्त्रियों के प्रति  आदर भाव रखें  दुर्गा सप्तशती में कहा गया है  
" सर्वरूपमयी देवि , सर्वं देवीमयंजगत  ।। "
भोजन में भी  सात्विकता रखें  नवरात्र में  यदि संभव हो  फलाहारी भोजन करें  , ऐसा ना कर सके सात्विक भोजन ग्रहण करें ।  लहसुन , प्याज,  मांस, मदिरा आदि तामसिक वस्तुओं का सेवन करने से मां भगवती भक्तों पर अप्रसन्न हो जाती है। शास्त्रोक्त विधि से की गई पूजा से ही भगवती जगदंबा भक्तों पर प्रसन्न होकर मनोवांछित वरदान  प्रदान करती है।

कलश स्थापन करने का समय
   कलश स्थापित करने का शुभ समय प्रातः 6:11 से 7:40 तक है।
प्रातः 7:41 से 9:11  तक राहु काल रहेगा।
अतः इस मध्य कलश स्थापित न करें। 
उसके पश्चात 9:11 से 10:41 तक का समय भी कलश स्थापना के लिये  शुभ समय है।

©आचार्य पंडित रोहित वशिष्ठ
सिद्धपीठ शिव बगलामुखी मंदिर
 ब्रह्मपुरी कालोनी पेपर मिल रोड
 सहारनपुर
 

मंगलवार, 31 मई 2022

युधिष्ठिर धर्मराज क्यो?

धर्मोविवर्धयति_युधिष्ठिरकीर्तनेन 

युधिष्ठिर धर्मराज क्यो?
आचार्य रोहित वशिष्ठ

महाराजा युधिष्ठिर धर्मावतार थे उनके समान धर्मज्ञ होना कठिन है तो भी वे अपने कुल के वयोवृद्ध भीष्मपितामह से धर्म विषयक चर्चा करते है और उनके वचनों को श्रद्धा पूर्वक सुनते है। उनके विषय में कहा गया वचन सत्य है युधिष्ठिर का स्मरण करने वाले मनुष्य का धर्म बढता है।
महाभारत के वनपर्व में महाराज युधिष्ठिर कहते है:- मैं कर्मों के फल की इच्छा रख कर उनका अनुष्ठान नहीं करता अपितु देना कर्तव्य है यह समझकर दान देता हुँ और यज्ञ को भी कर्तव्य मानकर ही उसका अनुष्ठान करता हुँ।
 उस कर्म का फल हो या ना हो गृहस्थ आश्रम में रहने वाले पुरुष का जो कर्तव्य है उसी का यथाशक्ति कर्तव्य बुद्धि से पालन करता हुँ। 
मैं धर्म का फल पाने के लोभ से धर्म का आचरण नहीं करता, अपितु साधु पुरुषों के आचार व्यवहार को देखकर शास्त्रीय मर्यादा का उल्लंघन न करके स्वभाव से ही मेरा मन धर्म पालन में लगा है। जो मनुष्य कुछ पाने की इच्छा से धर्म का व्यापार करता है वह धर्मवादी पुरुषों की दृष्टि में हीन और निंदनीय है।
 जो पापात्मा मनुष्य नास्तिकतावश, धर्म का अनुष्ठान करके उसके विषय में शंका करता है अथवा धर्म को दुहना चाहता है अर्थात धर्म के नाम पर स्वार्थ सिद्ध करना चाहता है, उसे धर्म का फल बिल्कुल नहीं मिलता।
 मैं सारे प्रमाणों से ऊपर उठकर केवल शास्त्र के आधार पर यह जोर देकर कह रहा हुँ कि तुम धर्म के विषय में शंका ने करो; क्योंकि धर्म पर संदेह करने वाला मानव पशु पक्षियों की योनि में जन्म लेता है।
 जो धर्म के विषय में सन्देह रखता है, अथवा जो दुर्बलात्मा पुरुष वेदादि शास्त्रों पर अविश्वास करता है वह जन्म मृत्यु रहित परमधाम से उसी प्रकार वंचित रहता है जैसे शुद्र वेदों के अध्ययन से।
धर्म के विषय में संशय रखने वाला बालबुद्धि मानव जिन्हे धर्म के तत्व का निश्चय हो गया है, उन समस्त ज्ञानीजनों को उन्मत्त समझता है; अतः वह बालबुद्धि दूसरे किसी से कोई शास्त्र प्रमाण ग्रहण नहीं करता।
 केवल अपनी बुद्धि को ही प्रमाण मानने वाला उद्दंड मानव श्रेष्ठ पुरुषों एवं उत्तम धर्म की अवहेलना करता है; क्योंकि वह मूढ इंद्रियों की आसक्ति से संबंध रखने वाले इस लोक-प्रत्यक्ष दृश्य जगत की सत्ता ही स्वीकार करता है। अप्रत्यक्ष वस्तु के विषय में उसकी बुद्धि मोह में पड़ जाती है। 
जो धर्म के प्रति संदेह करता है उसकी शुद्धि के लिए कोई प्रायश्चित नहीं है। वह धर्म विरोधी चिंतन करने वाला दीन पापात्मा पुरुष उत्तम लोकों को नहीं पाता अर्थात अधोगति को प्राप्त होता है।
 जो मूर्ख प्रमाणों की ओर से मुंह मोड़ लेता है, वेद और शास्त्रों के सिद्धांतों की निंदा करता है तथा काम एवं लोग के अत्यंत परायण है, वह नरक में पड़ता है।
 जो सदा धर्म के विषय में पूर्ण निश्चय रखने वाला है और सभी प्रकार की आशंकाएँ छोड़कर धर्म की ही शरण लेता है वह परलोक में अक्षय अनंत सुख का भागी होता है।
 धर्म कभी निष्फल नहीं होता। अधर्म भी अपना फल दिए बिना नहीं रहता ।
 धर्म का फल तुरंत दिखाई नहीं दे तो इसके कारण धर्म एवं देवताओं पर शंका नहीं करनी चाहिए ।
दोषदृष्टि न रखते हुए यत्नपूर्वक यज्ञ और दान करते रहना चाहियें। 
 कर्मों का फल अवश्य प्राप्त होता है यह धर्म शास्त्र का विधान है।

मंगलवार, 3 मई 2022

भगवान परशुराम जयंती पर विशेष लेख

श्री परशुराम जयंती  
अक्षय तृतीया
 के उपलक्ष में विशेष लेख 

" भगवान परशुराम की अवतार कथा "
आचार्य पंडित रोहित वशिष्ठ 
सिद्ध पीठ शिव बगलामुखी मंदिर 
ब्रह्मपुरी कॉलोनी , पेपर मिल रोड , सहारनपुर 
भगवान विष्णु के स्वरूप , भगवान शिव और महर्षि कश्यप के शिष्य ,.देवराज इंद्र के वरदान से अवतरित , भृगुवंशी द्विजवर , महर्षि जमदग्नि-पुत्र महाबाहु महातेजस्वी ,महाबलवान , महापराक्रमी और चिरंजीवी जामदग्नेय अर्थात परशुराम जी का इस धरा भूमि पर अवतार " वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को प्रदोष काल " में हुआ था ।

जन्म के समय पुनर्वसु नक्षत्र , सूर्य आदि छ ग्रह अपनी उच्च राशि पर थे और राहु मिथुन राशि पर स्थित था ।
 
भगवान परशुराम भगवान विष्णु के आवेश संज्ञक षष्ठम अवतार थे ।

 धर्म ग्रंथों में उनके अवतार की कथा इस प्रकार है

चन्द्रवंशी महाराज कुशाम्भ एक महाबलशाली एवं हरिचरणों में अनुरक्त पुत्र की कामना अपने ह्रदय में रखते थे ! इस उद्देश्य की पूर्ति करने के लिए महाराज कुशाम्भ वन गये और देवराज इन्द्र के प्रति भक्ति से परिपूर्ण हो घोर तपस्या की !
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राजा केवल वृक्षों के पत्तों का सेवन करते और इसके कुछ समय पश्चात् मात्र वायुपान करके ही कठोर तप किया ! देवराज इन पर प्रसन्न हुए , दर्शन दिये और कहा- राजन् ! मैं स्वयं ही आपके पुत्र रूप में आऊँगा ! समय आने पर देवेन्द्र गाधि नाम से राजा कुशाम्भ के यहां पुत्र रूप में उत्पन्न हुए !
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गाधि धर्मपरायण , महापराक्रमी और महान हरिभक्त हुए ! इन्होंने संतान के रूप में कन्या प्राप्त करने की इच्छा की ! माँ भगवती की आराधना की और माँ के वर से पुत्री को प्राप्त किया ! कन्या का नाम सत्यवती रखा गया ! सत्यवती माता-पिता को सुख प्रदान करते हुए धीरे-धीरे बढती रही , पिता पुत्री को देख प्रसन्नता से खिल उठते ! 
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जब कन्या विवाह योग्य हुई , पिता को पुत्री के विवाह की चिन्ता हुई , योग्य वर की तलाश होने लगी ! तपस्विनी और तेजस्वी कन्या के लिए भृगुपुत्र महर्षि ऋचीक को योग्य वर जान पिता ने कन्यादान किया !
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पति संग राजकुमारी सत्यवती वन में आ गयी ! पति को सेवा से संतुष्ट किया , पति की पूजा-आराधना की सामग्री समय पर प्रस्तुत की , पति अपनी प्रियतमा से बेहद प्रसन्न रहते ! काफी वर्ष बीत जाने के बाद भी संतानसुख न होने के कारण सत्यवती चिन्तातुर हो दुःख से भर उठी ! 
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पत्नी को व्याकुल देख महर्षि ने सान्त्वना दी और कहा - मैं अपने तप के प्रभाव से , हरिचरणों की भक्ति से तपोनिष्ठ संतान उत्पन्न करने में सक्षम हूँ , प्रिये चिन्ता मत करो ! हमें शीघ्र ही योग्य व हरिभक्त पुत्र की प्राप्ति होगी !
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महर्षि ऋचीक ने संतान की कामना से अपनी पत्नी सत्यवती के लिए चरु ( यज्ञीय खीर ) तैयार की ! महर्षि की भार्या ने कहा - प्रभु ! मेरी माता के लिए भी चरु तैयार करें जिससे वे पुत्रवती हों ! महर्षि ने भार्या की बात मान सत्यवती की माता के लिए अलग से चरु प्रदान की !
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उपयोग के समय गाधि-पत्नी ने पुत्री को कहा - बेटी ! सभी अपने लिए गुणवान पुत्र की चाह रखते हैं , पत्नी के भाई के लिए विशेष रुचि नहीं होती , तुम मुझसे चरु बदल लो ! माता के कहने पर सत्यवती ने चरु बदल लिया !
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तप से लौटने पर महर्षि ऋचीक ने पत्नी में विपरित लक्षणों को देख क्रोध में कहा - " यह तुमने क्या किया ? चरु बदल लिया ! तुम्हें दिये गये चरु में शान्ति , ज्ञान , तितिक्षा आदिक सम्पूर्ण ब्राह्मणोचित गुणों का समावेश था , अब ये गुण तुम्हारे भाई को मिल जाएंगें और दूसरे चरु में सम्पूर्ण ऐश्वर्य , महान पराक्रम , शूरता और महाबल की सम्पत्ति के गुणों का समावेश था जो अब तुम्हारे पुत्र को प्राप्त होंगे !
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विपरित प्रयोग होने से तुम्हारा ब्राह्मण-पुत्र भयंकर अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाला , क्रोध के आवेश में आने वाला , क्षत्रियों के गुणों को धारण करने वाला उत्पन्न होगा और तुम्हारा भाई शान्तिप्रिय व ब्राह्मणों के गुणों को धारण करने वाला होगा !"
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सत्यवती यह सुनकर काँप उठी और हाथ जोड कहा - भगवन् ! आप प्रसन्न हों , यह मुझसे भूलवश हुआ है , आप कुछ ऐसा कीजिए कि पुत्र ब्राह्मणोचित गुणों से सम्पन्न हो चाहे पौत्र आपके कहे अनुसार हो जाए ! महर्षि ने कहा - कल्याणी ! यह बात मैं मान लेता हूँ ! ऐसा ही होगा , तुम्हारा पौत्र महान तपस्वी और भगवान विष्णु का अंश होगा ! 
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सत्यवती से महर्षि जमदग्नि का जन्म हुआ और उनके भाई के रूप में विश्वामित्र ने जन्म लिया ! महर्षि जमदग्नि धर्मपरायण व इन्द्रभक्त हुए , इन्होंने सूर्यवंशी महाराज रेणु की कन्या रेणुका से विवाह किया और इनके यहां स्वयं भगवान नारायण पुत्र रूप में अवतरित हुए , महर्षि ने पुत्र का नाम "राम" रखा !

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भगवान परशुराम का समूचा जीवन अनुपम प्रेरणाओं व उपलब्धियों से परिपूर्ण है ।
 भृगुकुल शिरोमणि परशुराम जी ऋषियों के ओज और क्षत्रियों के तेज दोनों का अद्भुत संगम माने जाते हैं। 
इनके माता-पिता ऋषि जमदग्नि व रेणुका भी विलक्षण गुणों से सम्पन्न थे। जहां जमदग्नि जी को अग्नि पर नियंत्रण पाने का वरदान प्राप्त था, वहीं माता रेणुका को जल पर नियंत्रण पाने का ।

महादेव शिव के प्रति विशेष श्रद्धा भाव के चलते एक बार बालक राम भगवान शंकर की आराधना करने कैलाश जा पहुंचे । 
वहां देवाधिदेव ने उनकी भक्ति और शक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अनेक अस्त्र-शस्त्रों सहित
 दिव्य " परशु " प्रदान किया। 
इसी अमोघ परशु को धारण करने के कारण बालक राम से " परशुराम " बन गये । 
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने सीता स्वयंवर के प्रसंग में भगवान परशुराम के गुणों की प्रशंसा करते हुये कहा था 

" राम मात्र लघुनाम हमारा । 
परसु सहित बड़ नाम तोहारा ।। " 

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श्रीमद्भागवत के अनुसार एक बार परशुराम जी की अनुपस्थिति में माता रेणुका जल लाने गंगा तट गयीं । उस वक्त वहां गन्धर्वराज चित्ररथ अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे। 
रेणुका उनकी जलक्रीड़ा देखने में ऐसी निमग्न हो गयीं कि उन्हें समय का बोध ही न रहा । जमदग्नि ऋषि को जब अपनी पत्नी के उस मर्यादा विरोधी आचरण का पता चला तो उन्होंने क्रोधित होकर अपने पुत्रों को मां का शीश काटने की आज्ञा दी ।
परशुराम जी के चार अन्य भाइयों ने माता माता के प्रति अपराध से भयभीत होकर और माता के स्नेह का स्मरण करते हुए , पिता की इस आज्ञा का उल्लंघन कर दिया ।
 आज्ञा उल्लंघन से कुपित ऋषि जमदग्नि ने अपने इन चारों पुत्रों को पशु बनने का श्राप दे दिया ।
 पिता के श्रापवश परशुराम जी के चारों भाई पशु बन आश्रम में स्थित हो गए ।
परशुराम जी ने आश्रम में आकर अपने भाईयों को न पाकर और रोती हुई अपनी माता को देखकर अपनी दिव्य दृष्टि से सारी घटना को जान लिया ।
परशुराम शान्त भाव से पिता के चरणों में प्रणाम कर पिता के सम्मुख हाथ जोडकर निश्चल भाव से खडे हो गये ।
 पिता जमदग्नि ने अपने पुत्र की ओर देखते हुए कहा 
पुत्र परशुराम शीध्र ही अपनी माता के शीश को काट दो ।
 मातृ-पितृ भक्त परशुराम अपने पिता की अद्भुत पराक्रम और सामर्थ्य को जानते थे ।
पिता के चरणो में नतमस्तक परशुराम ने बिना विलंब किए और परिणाम का चिंतन किए बगैर भगवान शिव के दिए अमोघ परशे से अपनी माता के शीश को काट दिया ।
अपने पुत्र की पितृ भक्ति से ऋषि जमदग्नि बडे प्रसन्न हुए और उन्होंने परशुराम से वरदान मांगने के लिए कहा ।
भगवान परशुराम ने हाथ जोड़कर अपने पिता से कहा कि यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरी माता को पुनः जीवित कर दें ।
मेरे चारों भाई भी पूर्ववत् मनुष्य शरीर को प्राप्त कर आपकी सेवा करें ।
जिस प्रकार सोता हुआ बालक जागकर शयन अवस्था की घटनाओं से अनभिज्ञ रहता है , उसी प्रकार मेरी माता एवं मेरे भाईयों को आज की घटना का स्मरण न रहे , उनका स्नेह मुझ पर पूर्ववत् बना रहे ।
ऋषि जमदग्नि ने प्रसन्न होकर परशुराम को यह सभी प्रदान प्रदान कर दिए ।
वरदान के प्रभाव से माता रेणुका जीवित हो उठी और चारों भाई भी मनुष्य शरीर में आ गए ।
चारों भाइयों और माता ने परशुराम जी को हृदय से लगा लिया ।
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परशुराम जी का समूचा जीवन अनुपम प्रेरणाओं व उपलब्धियों से परिपूर्ण है। 
वे न सिर्फ ब्रह्मास्त्र समेत विभिन्न दिव्यास्त्रों के संचालन में पारंगत थे अपितु योग, वेद और नीति तथा तंत्र कर्म में भी निष्णात थे। 
शिव पंचचत्वारिंशनाम स्तोत्र की रचना परशुराम जी ने ही की थी ।
वे पशु-पक्षियों तक की भाषा समझते थे और उनसे बात कर सकते थे, 
हिंसक वन्यजीव उनके स्पर्श मात्र से ही उनके मित्र बन जाते थे। 
इन्हें श्रेष्ठ राजनीति के मूल्यों का प्रतिष्ठाता माना गया है वे शासन में मानवीय गरिमा की सर्वोच्चता के पक्षधर थे। अन्याय के विरुद्ध आवेशपूर्ण आक्रामकता के विशिष्ट गुण के कारण उन्हें भगवान विष्णु के 'आवेशावतार' की संज्ञा दी गयी है। न्याय के प्रति उनका समर्पण इतना था कि उन्होंने हमेशा अन्यायी को खुद ही दंडित किया। 
ब्रह्माण्ड में शस्त्रविद्या के महान गुरु के नाम से विख्यात भगवान परशुराम ने महाभारत युग में भी अपने ज्ञान से कई महारथियों को शस्त्र विद्या प्रदान की थी।
जिस प्रकार देवनदी गंगा को धरती पर लाने का श्रेय राजा भगीरथ को जाता है ठीक उसी प्रकार पहले ब्रह्मकुंड (परशुराम कुंड) से और फिर लौहकुंड (प्रभु कुठार) पर हिमालय को काटकर ब्रह्मपुत्र जैसे उग्र महानद को धरती पर लाने का श्रेय परशुराम जी को ही जाता है। यह भी कहा जाता है कि गंगा की सहयोगी नदी रामगंगा को वे अपने पिता जमदग्नि की आज्ञा से धरा पर लाये थे। तमाम पौराणिक उद्धरणों के अनुसार केरल, कन्याकुमारी व रामेश्वरम की संस्थापना भगवान परशुराम ने ही की थी। उन्होंने जिस स्थान पर तपस्या की थी, वह स्थान आज तिरुअनंतपुरम के नाम से प्रसिद्ध है। 
केरल में आज भी पुरोहित वर्ग संकल्प में परशुराम क्षेत्र का उच्चारण कर उक्त समूचे क्षेत्र को परशुराम की धरती की मान्यता देता है। विदेहराज जनक की राजसभा में सीता स्वयंवर के दौरान श्रीराम द्वारा शिवधनुष तोड़ने पर परशुरामजी का क्रोध व राम के अनुज लक्ष्मण से उनका संवाद सनातनधर्मियों में सर्वविदित है; मगर उनकी महानता इस बात में है कि ज्यों ही उन्हें अवतारी श्रीराम के शौर्य, पराक्रम व धर्मनिष्ठा का बोध हुआ और उनको योग्य क्षत्रिय कुलभूषण प्राप्त हो गया तो उन्होंने स्वत: दिव्य परशु सहित अपने समस्त अस्त्र-शस्त्र राम को सौंप दिये और महेन्द्र पर्वत पर तप करने के लिए चले गये। कांवड़ यात्रा का शुभारंभ परशुराम जी ने किया था। अंत्योदय की बुनियाद भी परशुराम जी ने ही डाली थी। समाज सुधार और समाज के शोषित-पीडि़त वर्ग को कृषिकर्म से जोड़कर उन्हें स्वावलंबन का पाठ पढ़ाने में भी परशुराम जी की महती भूमिका रही है।

पाप संहारक परशुराम
सर्वविदित है कि परशुराम जी का क्षत्रियों के विरुद्ध अस्त्र उठाना उनकी उस अन्याय के विरुद्ध प्रबल प्रतिक्रिया थी जो महिष्मती राज्य के उस काल के हैहयवंशीय क्षत्रिय शासक आम प्रजा पर कर रहे थे, निर्दोष पिता की हत्या ने उनकी क्रोधाग्नि में घी का काम किया।
कहते हैं, उन दिनों महिष्मती राज्य का हैहय क्षत्रिय कार्तवीर्य सहस्रार्जुन राजमद में मदान्ध था। समूची प्रजा उसके क्रूर अत्याचारों से त्राहि-त्राहि कर कर ही थी। भृगुवंशीय ब्राह्मणों (परशुरामजी के वंशजों) ने जब उसे रोकने का प्रयत्न किया तो अहंकार में भरे सहस्रार्जुन ने उनके आश्रम पर धावा बोलकर उसे तहस-नहस कर दिया। इस पर भी क्रोध शांत न हुआ तो उसने परशुराम जी के पिता ऋषि जमदग्नि पर हमला बोलकर उन्हें 21 स्थानों से काटकर मार डाला। तब परशुराम जी ने अपने परशु से कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुन को उसके समूचे कुल समेत मृत्युलोक पहुंचा दिया । 
यह बात सभी को.ज्ञात होनी चाहिये कि भगवान परशुराम ने केवल उन्हीं क्षत्रियों का वध किया था , जो पाप , भोग-विलास और अनाचार में लिप्त थे । ब्राह्मण , गौ , नारी पर अत्याचार करते थे।
 धर्म का मार्ग त्याग कर अधर्म का पालन करते थे ।
धर्म पालक क्षत्रियों को उनसे कदापि भय न था ।
यह सर्व विदित है कि महाराज जनक , दशरथ जैसे धार्मिक राजाओ पर उनका वरद हस्त था ।
अनैक सूर्यवंशी , चंद्रवंशी राजा उनके आशीर्वाद से ही धराभूमि पर निर्भर विचरण करते थे।

भगवान परशुराम ने अश्वमेध नामक महायज्ञ का विधिवत् अनुष्ठान किया था और उसमें श्रेष्ठ ब्राह्मणों को सातों द्वीपों सहित पृथ्वी दान कर दी थी तथा स्वयं महेन्द्र पर्वत का आश्रय ले कठोर साधना की !
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पितृभक्त भगवान परशुराम ने तत्कालीन आतताई दुष्ट राजाओं का वध कर भूभार हरण किया और धर्म की स्थापना की ! राजा युधिष्ठिर ने अपने राज्याभिषेक के समय रेणुकानंदन परशुराम जी ने अभिषेक किया ! 
राजसूय यज्ञ में उनकी उपस्थिति महाभारत में वर्णित है ।
पितामह भीष्म इनके शिष्य रहे हैं , परशुराम जी ने इन्हें कहा था - पुत्र ! कुरुनंदन भीष्म ! इस जगत में भूतल पर विचरने वाला कोई भी क्षत्रिय तुम्हारे समान नहीं है !
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श्रीकृष्णकुमार प्रद्युम्न ने दिग्विजय के प्रसंग में सेना सहित महेन्द्राचल पर जाकर भगवान परशुराम के श्रीचरणों में दण्डवत प्रणाम किया और कहा - हे प्रभो ! मैं श्रीकृष्णपुत्र प्रद्युम्न आपके श्रीचरणों में मस्तक झुका प्रणाम करता हूँ , मेरा प्रणाम स्वीकार करें ! भगवान परशुराम ने यादवश्रेष्ठ महावीर प्रद्युम्न का स्वागत किया , विजय का आर्शीवाद दिया और सम्पूर्ण सेना के लिए अपनी योगशक्ति से छप्पन भोगों को प्रकट कर सबकी तृप्ति की , सबने स्वादिष्ट भोज्य पदार्थो का आनन्द लिया !
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जो चारों वर्णो में भगवान परशुराम का अनन्य भक्त है , उस भाग्यशाली पुण्यात्मा को इनकी कृपा प्राप्त होती है , वह सूर्य के समान तेजस्वी व पराक्रम से युक्त बनता है और सौम्य स्वरूप प्रभु परशुराम की करुणा का पात्र बनता है !
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भगवान परशुराम की जय हो !
©®
आचार्य पंडित रोहित वशिष्ठ 
सिद्ध पीठ शिव बगलामुखी मंदिर 
ब्रह्मपुरी कॉलोनी , पेपर मिल रोड , सहारनपुर 9690066000

मंगलवार, 8 मार्च 2022

है कितना गौरवशाली पद वसुधा में हिंदू नारी का

सुख में, दुख में, रण में, बन में
छाया पति की बन जाती है;
अपनी कोमल उंगलियों को 
रथ चक्के की कील बनाती है;

काली-सी मतवाली बनकर
अरिदल का रक्त बहाती है;
अन्यायी आताताइयों की 
दल देती पल में छाती है;
 
स्वागत करती बाणों, प्राणों से
 बरछी और कटारी का 
है कितना गौरवशाली पद
वसुधा में हिंदू नारी का ।। 1 ।।  

जिसके उज्जवल तप के आगे
झुक जाया करता इंद्रासन,
लख जिसका अनुपम शौर्य 
डगमगाने लगते हैं सिंहासन;
 
पृथ्वी पर गिरते राजमुकुट
लख करके जिसका वीरासन,
है मिट जाता वसुधापरसे 
अन्यायी क्रूर कुटिल शासन;

 थक जाता दस सहस्र गज बल,
 पर अन्त न मिलता सारी का।
 है कितना गौरवशाली पद 
 वसुधा में हिंदू नारी का ।। 2 ।। 
 
पाताल-लोक भूगोल तथा वह—
स्वर्गलोक जल जाता है,
क्रोधानल से जिसके क्षण में
रबि-शशि-मंडल झुलसाता है;
 
तारक, विद्युत, बादल का क्या—
कहना जब नभ थर्राता है;
सागर गिरि सरिता मरू—
समीर का चिह्न ना रहने पाता है;

 जिसके चरणों पर झुका शीश 
 यमपुर के भी अधिकारी का।
 है कितना गौरवशाली पद
 बसुधा में हिंदू नारी का।। 3।।
  
रण में जाकर डट गई कभी
अरिदल को मार भगाने को,
चंडी का प्रबल प्रचण्ड तेज
दुनिया को याद दिलाने को;

या झटपट उद्यत हुई स्वयं ही
अनल ज्वाल धधकाने को
लपटों में जा छिप गई कभी
जो अपना धर्म बचाने को;

इसके ही कारण मान बढ़ा
जोहर-व्रत की चिंगारी का।
है कितना गौरवशाली पद 
बसुधा में हिंदू-नारी का ।।4।।

(विलक्षण)

सोमवार, 28 फ़रवरी 2022

महाशिवरात्रि शिवार्चन विधि एवं शुभ मुहूर्त

 महाशिवरात्रि पर विशेष लेख

मंगलवार 1 मार्च 2022 1 मार्च 2022

आचार्य पंडित रोहित वशिष्ठ

सिद्ध पीठ श्री बगलामुखी मंदिर ब्रह्मपुरी कॉलोनी ,पेपर मिल रोड सहारनपुर ,
मो.न.
96900 66000,
9897191499

भगवान शिव को अत्यंत प्रिय महाशिवरात्रि कही गई है ।
भगवान शिव के अवतरण के मंगल सूचक के रूप में इस व्रत को किया जाता है।
महाशिवरात्रि को ही भगवान शिव  इस भूमंडल पर निराकार से साकार रूप में ब्रह्मा और विष्णु जी के सम्मुख करोड़ों सूर्य के प्रकाश के समान शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे । सनातन शिव भक्तों में यह व्रत

 " व्रतराज " के नाम से विख्यात है। भगवान के निष्काम और सकाम भक्त इस व्रत को जीवनपर्यंत करते हैं । भगवान शिव भोग और मोक्ष दोनों को देने वाले हैं। जिन्हे  सांसारिक विषय वासनाओं से मुक्ति चाहिए उन्हे  तो यह व्रत करना ही चाहिए  साथ ही साथ सांसारिक सुख चाहने वाले भी शिवरात्रि का व्रत अवश्य करना चाहिए।

इस वर्ष की महाशिवरात्रि का विशेष योग

मंगलवार  धनिष्ठा नक्षत्र,   परिघ व शिव योग  इस वर्ष की महाशिवरात्रि को विशेष बना रहें हैं।
इस प्रकार के योग में शिवार्चन करने से शत्रु शमन होता है तांत्रिक क्रियाओं से निवृत्ति होती है। शत्रु पराभव को प्राप्त होते हैं।

प्रत्येक सनातन धर्मी को प्रयत्नपूर्वक महाशिवरात्रि का व्रत  करना चाहिए ।जो व्यक्ति पूरे वर्ष भगवान शिव की पूजा नहीं कर सकता। वर्ष में केवल एक दिन  महाशिवरात्रि पर व्रत एवं पूजन करने से  एक वर्ष तक  किए गए शिवपूजन का फल उसे प्राप्त हो जाता है।

महाशिवरात्रि पर इस बार ग्रहों का विशेष योग बन रहा है । 12 वें भाव में मकर राशि में पंचग्राही योग बनेगा । इस राशि में मंगल और शनि के साथ बुध, शुक्र और चंद्रमा रहेंगे । लग्न में कुंभ राशि में सूर्य और गुरु की युति बनी रहेगी । चौथे भाव में राहु वृषभ राशि में रहेगा, जबकि केतु दसवें भाव में वृश्चिक राशि में रहेगा।

महाशिवरात्रि के दिन सुबह 11.47 से दोपहर 12.34 तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा । इसके बाद दोपहर 02.07 से लेकर 02.53 तक विजय मुहूर्त रहेगा । पूजा या कोई शुभ कार्य करने के लिए ये दोनों ही मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ हैं । शाम के समय 05.48 से 06.12 तक गोधूलि मुहूर्त रहने वाला है ।

कैसे करें महाशिवरात्रि व्रत
महाशिवरात्रि के व्रत में शिव पूजन, शिव मंत्र का जप, रात्रि के चार पहर की पूजा एवं जागरण को विशेष माना गया है।

प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि करे । भगवान शिव की पूजा में गले में रुद्राक्ष की माला, माथे पर भस्म या चन्दन का त्रिपुंड और मुख में भगवान शिव का नाम यह विशेष फल देने वाले कहे गये है। शिव पूजन करने से पूर्व अपने शरीर पर रूद्राक्ष मस्तक पर भस्म  और जिह्वा पर शिव नाम अवश्य धारण करना चाहिए । हाथ में जल लेकर सर्वप्रथम महाशिवरात्रि व्रत रखने का संकल्प करें ।भगवान से प्रार्थना करें कि हे शिव आपकी प्रसन्नता के लिए मैं महाशिवरात्रि का व्रत कर रहा हूं मेरे इस व्रत को आप पूर्ण करने की कृपा करें ।
इस प्रकार मानसिक संकल्प कर  शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
यदि संभव हो तो किसी वेद मंत्रों के जानने वाले ब्राह्मण के माध्यम से शिवपूजा करनी चाहिए। यदि ऐसा न हो सके तो स्वयं ही पूजा करनी चाहिए ।
भगवान शिव की पूजा भगवान शिव के नाम अथवा मंत्र से करनी चाहिए ।
भगवान शिव का सबसे सर्वोत्तम और सरल मंत्र " नमः शिवाय " है। जो व्यक्ति यज्ञोपवीत धारण करने का अधिकारी है और यज्ञोपवीत धारण करता है उसे " ओम नमः शिवाय " बोलना चाहिए ।
अन्य सभी को " नमः शिवाय " कहकर शिव पूजन करना चाहिए।
  स्त्रियाॅं " शिवाय नम:" का जप करें।



  

धर्म कार्य सदैव धर्मशास्त्रों को आधार बनाकर ही करना चाहिए। मनमाने ढंग से की गई पूजा का फल तो मिलता ही नहीं साथ ही पाप का भागी भी बनना पड़ता है।  सनातन नियमों का पालन करते हुए ही भगवान शिव की आराधना एवं पूजन करना चाहिए।
शिवपूजन से पूर्व श्री गणेश,मां पार्वती,श्री नंदी,कार्तिक,कुबेर,कीर्तिमुख,गंगा,यमुना,सरस्वती एवं नाग आदि शिव गणों की पूजा की जाती है। शिव गणों की पूजा करने के पश्चात ही भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए ।
प्रत्येक वस्तु को अर्पण करते समय अपने अधिकार के अनुसार पंचाक्षर मंत्र जप करना चाहिए।
भगवान शिव का जल से अभिषेक करना चाहिए। उसके पश्चात भगवान शिव को दूध ,दही, गाय का घी, शहद ,शक्कर इनसे अलग अलग या इन पांचों को एक साथ मिलाकर  शिवलिंग पर अर्पण करें ।उसके पश्चात भगवान शिव को गंगाजल से स्नान कराएं । भगवान शिव को वस्त्र अर्पण कर एक जनेऊ भी अर्पण करे।  भगवान शिव को चंदन का तिलक करें  बिना टूटे साबुत चावल शिवलिंग पर चढ़ाएं । भगवान को पुष्प व  पुष्पमाला चढ़ाएं । बेलपत्र अर्पण करें, बेलपत्र तीन की संख्या में होने  चाहिए। भांग धतूरा  भी चढ़ाना चाहिए ।भगवान को धूप दीप दिखाएं। भगवान को भोग लगाएं भगवान को फल और पान अर्पण करें साथ ही भगवान शिव को दक्षिणा भी अर्पण करें । इस इस प्रकार भगवान शिव की यह पूजा पूर्ण होती हैं। प्रदोष काल में शिव मंदिर में जाकर पहले पहर की पूजा करनी चाहिए।
ऊपर बताई गई विधि से ही शिव पूजन करना चाहिए ।
रात्रि में चार पहर की पूजा करने के पश्चात अगले दिन प्रातः काल स्नान करके पुनः भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए इस प्रकार अलग अलग समय में पूजन करके रात्रि में जागरण करके भगवान शिव की पूजा करने से पूरे वर्ष किए जाने वाले शिव पूजन एवं जप का फल एक ही दिन में प्राप्त हो जाता है। विधि पूर्वक भगवान की गई भगवान शिव की पूजा मनोवांछित फल को प्रदान करती है।
शिव पूजन का शुभ मुहूर्त

मंगलवार 1 मार्च 2022
प्रातः 4:10 से 6:47 तक
उसके पश्चात
प्रातः 9:40 से दोपहर  1:59 तक
उसके पश्चात

चार प्रहर की पूजा  का समय 

पहले पहर की पूजा
सायं 6:30 से 9:30 तक
दूसरे पहर की पूजा
रात्रि 9:30 से 12:30 तक
  तीसरे पहर की पूजा
  रात्रि 12:30 से 3:30 तक
  चौथे पहर की पूजा
  प्रातः 3:30 से 5:30 तक
©आचार्य पंडित रोहित वशिष्ठ